Varn kise kahate hain ( वर्ण किसे कहते हैं ) परिभाषा , भेद , उदाहरण

Varn kise kahate hain ( वर्ण किसे कहते हैं? ) | परिभाषा , भेद , उदाहरण

Varn kise kahate hain ( वर्ण किसे कहते हैं ):- वर्ण ( Varn ) उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसका खंड न हो, जैसे-अ, ई, व, च, क इत्यादि। ‘पानी’ शब्द की दो ध्वनियाँ हैं- ‘पा’ और ‘नी’। इनके भी चार खंड हैं— + आ, न् + ई। इसके बाद इन चार ध्वनियों के टुकड़े नहीं किए जा सकते, इसलिए ये मूल ध्वनियाँ वर्ण  या अक्षर हैं।

संक्षेप में, वर्ण वह छोटी-सी-छोटी ध्वनि है, जो कान का विषय है और जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते। वर्ण हमारी उच्चरित भाषा या वाणी की सबसे छोटी इकाई है। इन्हीं इकाइयों को मिलाकर शब्द समूह और वाक्यों की रचना होती है। स्पष्ट है कि वर्ण और उच्चारण का बड़ा ही गहरा संबंध है। एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता । मूलत: हिन्दी मे 42 वर्ण हैं। वर्णों के उच्चारण – समूह को वर्णमाला कहते हैं।

दूसरे शब्दो में परिभाषा:- वर्ण (अक्षर) (LETTERS)

वर्ण ( Varn ) का दूसरा नाम अक्षर है। अक्षर शब्द का अर्थ ही होता है- अनाशवान। अतः वर्ण अखण्ड मूल ध्वनि का नाम है। वह किसी शब्द का वह खण्ड है, जिसे खण्ड-खण्ड नहीं किया जा सकता, जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता। प्रत्येक वर्ण की ध्वनि अपना एक विशेष आकार रखती है। इसी आकार को वर्ण कहते हैं। प्रत्येक भाषा में कई वर्ण होते हैं। हिन्दी की लिपि का नाम देवनागरी है।

Varn kitne prakar ke hote hain ( वर्ण के प्रकार, भेद )

वर्ण दो प्रकार के होते हैं। जो कि निम्नलिखित हैं-

1- स्वर

2- व्यंजन

1- स्वर:- वे वर्ण, जिनके ऊच्चारण के लिए किसी दूसरे वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, स्वर कहलाते हैं। हिन्दी वर्ण-माला मे स्वरों की संख्या 14 है। ये हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लू, लू, ए, ऐ, ओ, औ। इनमें अ, इ, उ, ऋ, ल ह्रस्व स्वर हैं। वहीं आ, ई, ऊ, ऋ, लू, ए, ऐ, ओ, औ दीर्घ स्वर हैं और इनके उच्चारण में एक मात्रा के उच्चारण का समय लगता है। एक मात्रा का समय उतना कहलाता है, जितना ‘अ’ के बोलने में लगता है। , , , ऋ,लू, , , , औ दीर्घ स्वर हैं और इनके उच्चारण में एक मात्रा का दूना समय लगने के कारण ये द्विमात्रिक स्वर कहलाते हैं।

ऋ (दीर्घ) और लु, लु (ह्रस्व और दीर्घ) दोनों का प्रयोग अब नहीं होता। एक मात्रिक, द्विमात्रिक के अतिरिक्त स्वर का एक और भेद होता है, जिसे प्लुत (विमात्रिक) कहते हैं। इसके उच्चारण में एक मात्रा का तिगुना समय लगता है। यह चिल्लाने, गाने, रोने और दूर से पुकारने
में व्यवहृत होता है। जैसे- बाप रे, रे मोहना। इसकी पहचान के लिए दीर्घ स्वर के आगे तीन का अंक लिखने का प्रचलन था जो व्यवहारिक रूप से अब प्रचलन में नहीं है।

2- व्यंजन:- जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं हो पाता, वे व्यंजन-वर्ण के अन्तर्गत आते हैं। वर्ण-माला से स्वरों को निकाल देने पर शेष वर्ण क, ख आदि व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन असे मिलकर पूर्णतः उच्चारित होता है, उसमें से अ को निकाल देने से उसका रूप हलन्त के साथ हो जाता है।
जैसे- क्, ख्, ग, घ आदि।

से लेकर तक व्यंजन वर्ण कुल पाँच वर्णों में बाटा गया हैं-

1. क वर्ग-क, ख, ग, घ, ङ   (कंठ से)
2. च वर्ग-च, छ, ज, झ, ब (तालु से)
3. ट वर्ग-ट, ठ, ड, ढ, ण (मूर्द्धा से)
4. त वर्ग-त, थ, द, ध, न (दंत से)
5. प वर्ग-प, फ, ब, भ, म (ओष्ठ से)

य, र, ल, व अन्तस्थ हैं, श, ष, स, ह ऊष्म हैं; क्ष, व, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यंजन हैं। क्ष, त्र, ज्ञ, श्र- ये चार संयुक्त व्यंजन वर्गों के योग से बनते हैं- क् + ष् = क्ष, त् + २ = त्र, ज् + ञ् = ज्ञ, श् + २ = श्र संयुक्त व्यंजन हैं जिनके लिए अलग से लिपि चिह्न निर्धारित हैं। उच्चारण की सुविधा के लिए ड, ढ के नीचे बिन्दी लगाकर दो और वर्ण बनाये जाते हैं- 5 और 6 (प्रयोग- सड़ना, पढ़ना आदि)। इनके अतिरिक्त अनुस्वार (‘), अनुनासिक (चन्द्र बिन्दु) () तथा विसर्ग ( ) भी व्यंजनों के अन्तर्गत समझे जाते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं हो सकता।

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