Hindi Patra Lekhan ( पत्र लेखन ) , प्रकार , Patra Format in hindi

Hindi Patra Lekhan ( पत्र लेखन ) , प्रकार , Patra Format in hindi

Hindi Patra Lekhan ( पत्र लेखन ):-  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे प्रतिदिन सामाजिक व्यवहार सम्बन्धी दायित्वों का निर्वहन करने हेतु कितने ही व्यक्तियों, सम्बन्धियों, कार्यालयों से सम्पर्क साधना होता है। हर स्थान पर वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सकता। अत: इस हेतु उसे पत्र का सहारा लेना पड़ता है। यद्यपि आज के वैज्ञानिक युग में विचार विनिमय के अत्याधुनिक साधनों के होते हुए भी पत्र एक सरल, सुगम एवं सस्ता साधन है। सरकारी, गैर-सरकारी कार्यालयों तथा व्यापारियों हेतु सूचनाओं के आदान-प्रदान का प्रमुख साधन ही बल्कि एक प्रामाणिक एवं लिखित दस्तावेज के रूप में जाना जाता है।

पत्र आज मानव-जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है इसलिए उसने भी एक कला का रूप धारण कर लिया है। अतः पत्र-लेखन
कला में कुशलता प्राप्त करना हमारे जीवन में सफलता हेतु आवश्यक है। अपने आत्मीय जनों को, मित्रों को लिखे जाने वाले पत्र स्व
हस्तलेख से लिखने के साथ उसमें अपनी आत्मीयता, निकटता एवं भावनाओं की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। उसी प्रकार अधिकारियों,
अपरिचितों को लिखे जाने वाले पत्रों में निश्चित औपचारिकताओं का निर्वहन करने से उनकी प्रभावोत्पादकता बढ़ जाती है। अत: Patra Lekhan ( पत्र लेखन ) हेतु उसकी भाषा, आकार, क्रम, शिष्टता, लिखावट आदि आवश्यक बातों का ज्ञान अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

अच्छे Patra Lekhan ( पत्र लेखन ) की विशेषताएँ-

एक अच्छे पत्र की पाँच विशेषताएँ है-

(क) सरल भावशैली (भाषाशैली)

(ख) विचारों की सुस्पष्टता

(ग) संक्षिप्त (संक्षेप) और संपूर्णता

(घ) प्रभावान्विति

(ङ) बाहरी सजावट।

(क) सरल भावशैली (भाषाशैली)-पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। ये उपयुक्त, सटीक, सरल और मधुर हो। सारी बात सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिखनी चाहिए। बातों को घुमा-फिराकर लिखना उचित नहीं।

(ख) विचारों की सुस्पष्टता- पत्र में लेखक के विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। कहीं भी पांडित्य-प्रदर्शन की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। बनावटीपन नहीं होना चाहिए। दिमाग पर बल देनेवाली बातें नहीं लिखी जानी चाहिए।

(ग) संक्षिप्त (संक्षेप) और संपूर्णता–पत्र अधिक लंबा नहीं होना चाहिए। वह अपने में संपूर्ण और संक्षिप्त हो। उसमें अतिशयोक्ति, वाग्जाल और विस्तृत विवरण के लिए स्थान नहीं है। इसके अतिरिक्त, पत्र में एक ही बात को बार-बार दुहराना एक दोष है। पत्र में मुख्य बातें आरंभ में लिखी जानी चाहिए। सारी बातें एक क्रम में लिखनी चाहिए। इसमें कोई भी आवश्यक तथ्य छूटने न पाए। पत्र अपने में संपूर्ण हो, अधूरा नहीं। पत्र-लेखन का सारा आशय पाठक के दिमाग पर पूरी तरह बैठ जाना चाहिए। पाठक को किसी प्रकार की उलझन में छोड़ना ठीक नहीं।

(घ) प्रभावान्विति- पत्र का पूरा असर पढ़नेवाले पर पड़ना चाहिए। आरंभ और अंत में नम्रता और सौहार्द के भाव होने चाहिए।

(ङ) बाहरी सजावट-पत्र की बाहरी सजावट से हमारा तात्पर्य यह है कि (i) उसका कागज संभवतः अच्छा-से-अच्छा होना चाहिए, (ii) लिखावट सुंदर, साफ और पुष्ट हो, (iii) विरामादि चिह्नों का प्रयोग यथास्थान किया जाए; (iv) शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद और अंत अपने-अपने स्थान पर क्रमानुसार होने चाहिए; (v) पत्र की पंक्तियाँ सटाकर न लिखी जाएँ और (vi) विषय-वस्तु के अनुपात से पत्र का कागज लंबा-चौड़ा होना चाहिए।

Patra lekhan kitne Prakar ke hote hain ( पत्र लेखन के प्रकार )

पत्र केो मुख्यत: दो भागो में बाँटा गया हैं-

1- अनौपचारिक पत्र ( Anopcharik Patra )

2- औपचारिक पत्र ( Aupcharik Patra )

1- अनौपचारिक पत्र ( Anopcharik Patra )

वे पत्र जो अपने परिचितों को, मित्रों को, सगे-सम्बन्धियों को लिखे जाते हैं, अनौपचारिक पत्र ( Anopcharik Patra ) कहलाते हैं। वस्तुत: ये पत्र व्यक्तिगत पत्र होते हैं, ये उन्हें ही लिखे जाते हैं, जिनसे उनके सम्बन्ध औपचारिक नहीं होते। इसलिए इन पत्रों में निजीपन होता है, आत्मीयता होती है, निश्चित प्रारूप या भाषा शैली के कठोर नियम नहीं होते, इसलिए इनमें व्यापक विविधता होती है। वैयक्तिक (पारिवारिक) तथा निमंत्रण पत्र इसी श्रेणी में आते हैं।

व्यक्तिगत तथा पारिवारिक पत्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है-1. अपने से बड़ों को, 2. अपने से छोटों को, 3. मित्रों, समवयस्कों
या सम्बन्धियों में भेजे जाने वाले पत्र, जिनमें, निमंत्रण, बधाई तथा संवेदना पत्र आदि आ जाते हैं।

व्यक्तिगत पत्र कहाँ से लिखा जा रहा है, किसे लिखा जा रहा है ? उसके लिए पत्र लेखक का पता व तिथि का उल्लेख कहाँ होगा?
उसके लिए सम्बोधन तथा आशीर्वचन क्या होगा, पत्र के मध्यभाग की भाषा शैली तथा स्वनिर्देश कहाँ होगा इस विषय में जानकारियों का होना आवश्यक है।

पत्रलेखक (प्रेषक) का पता एवं तिथि-

व्यक्तिगत पत्रों में सबसे ऊपर दाहिनी ओर पत्र लेखक (प्रेषक) का नाम के अतिरिक्त पूरा पता लिखा जाता है। (आजकल कम्प्यूटर
से टंकण के कारण इसे बायीं ओर लिखा जाने लगा है) तथा तिथि अर्थात् दिनांक का उल्लेख पता के ठीक नीचे होता है-
25, महादेव नगर, हवा  सड़क,
नन्दपुरी,
आगरा।
दि. 12 मई, 2018

सम्बोधन एवं अभिवादन-

व्यक्तिगत पत्र लिखे लिखा जाता है (प्रेषिति) उसका सम्बन्ध पत्र लेखक (प्रेषक) के साथ क्या है ? वह आयु में बड़ा है या छोटा
या समवयस्क। उसी के अनुसार अर्थात् संबंध के अनुसार उनके सम्बोधन शब्द एवं अभिवादन शब्द प्रयुक्त होते हैं, जैसे-
सम्बन्ध                                                           सम्बोधन                                                                          अभिवादन/आशीर्वचन
1. बड़ों के लिए                  पूज्य/पूजनीय/पूज्या श्रद्धेय/आदरणीय सादर प्रणाम!                                              सादर चरण स्पर्श
2. छोटों के लिए                   प्रिय पुत्र/प्रिय अनुज/प्रिय राजू चिरायु हो/शुभाशीष                              प्रसन्न हो खुश रहो/शुभाशीर्वाद
3. समवयस्कों के लिए               प्रिय मित्र/प्रिय बंधु/प्रिय रमेश/प्रिय सखी                                नमस्कार! जयहिन्द! सप्रेम नमस्ते !

मध्यभाग-
मध्यभाग का प्रारम्भ भी सम्बन्ध के अनुसार होना चाहिए-बड़ों को लिखे जाने वाले पत्रों का प्रारम्भ आपका, आपको से, छोटों के
लिए तुम्हारा या तुम्हें तथा समवयस्कों हेतु भी तुम्हें, तुमको आदि से होना चाहिए, जैसे-आपका पत्र मिला, तुम्हारे प्रधानाचार्य का पत्र मिला आदि।

स्वनिर्देश एवं हस्ताक्षर-
मध्य भाग के अन्त में पत्र के दाहिनी ओर (आजकल बायीं ओर का प्रचलन है) प्रेषिती से सम्बन्ध के अनुसार स्वनिर्देश का उल्लेख
कर पत्र लेखक को अपने हस्ताक्षर कर उसके नीचे कोष्ठक में अपने नाम का उल्लेख करना चाहिए।

बड़ों हेतु स्वनिर्देश के रूप में आपका आज्ञाकारी, आपका प्रिय पुत्र, आपका कृपाकांक्षी आदि में
छोटों हेतु-तुम्हारा शुभेच्छु, शुभचिन्तक, हितैषी
समवयस्कों हेतु-तुम्हारा अभिन्न मित्र, तुम्हारी प्रिय सहेली

पुत्र का पत्र पिता के नाम-
‘सुन्दर विलास’
महामंदिर
जोधपुर।
शिवनगर,

दि. 12 मई, 2018

आदरणीय पिताजी,
सादर चरण स्पर्श!
आपका पत्र प्राप्त हुआ। पढ़कर बड़ी प्रसन्नता हुई। मैं यहाँ सकुशल हूँ, आप सबकी कुशलता परमपिता परमात्मा से नेक
चाहता हूँ। मेरी वार्षिक परीक्षाएँ मार्च में होगी। पाठ्यक्रम पूरा हो चुका है, बहुत अच्छी तैयारी है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस वर्ष बोर्ड
मेरिट में स्थान अवश्य मिलेगा। आपको सूचित करते हुए हर्ष है कि परीक्षा समाप्ति पर विद्यालय का एक दल कश्मीर भ्रमण हेतु जा रहा
मेरी भी हार्दिक इच्छा है कि मैं भी इस दल में सम्मिलित होऊँ।
सुना है कश्मीर धरती का स्वर्ग है, वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अनिर्वचनीय है। वहाँ केसर की खेती होती है। फूलों से लदी घाटियाँ,
बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, डल झील तथा शालीमार एवं निशातबाग का नयनाभिराम दृश्य आगन्तुकों का मन मोह लेता है।
मुझे पूरा विश्वास है कि आप मुझे भी इस दल में सम्मिलित होने हेतु अपनी स्वीकृति देंगे। मेरा अभिन्न मित्र रमेश भी जा रहा है।
माताजी को प्रणाम कहें। प्रशान्त, अभिषेक को प्यार।

आपका आज्ञाकारी पुत्र
हेमराज गोयल
(हेमराज)

2- औपचारिक पत्र ( Aupcharik Patra ) कार्यालयी पत्र

औपचारिक पत्र ( Aupcharik Patra ) का आशय, किसी सरकारी, अर्द्ध-सरकारी गैर-सरकारी, स्वायतशासी, वह स्थान विशेष है जहाँ से प्रशासन का संचालन होता है।
अतः कार्यालयी पत्र से आशय किसी देश की सरकार और अन्य देश की सरकार के बीच, केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच,
सरकार और दूतावासों के बीच, एक राज्य सरकार और दूसरी राज्य सरकार के बीच, सरकार और अन्य विभागों के बीच, सरकार और व्यक्ति विशेष के बीच लिखे जाने वाले पत्र अर्थात् एक सरकारी पदाधिकारी या गैर सरकारी व्यक्ति, फर्म या संस्था को लिखे जाने वाले पत्र औपचारिक पत्र ( Aupcharik Patra ) कहलाते हैं।
ये पत्र पूर्णत: औपचारिक होते हैं फलतः इनमें भावुकता, आत्मीयता, मौलिकता तथा व्यक्तिगत सम्बन्ध का कोई स्थान नहीं होता।
नियत शैली में तटस्थ भाव से लिखे जाते हैं, भाषा शुष्क किन्तु शिष्ट, सुसंगत, विनम्र होती है।

औपचारिक पत्र ( Aupcharik Patra ) के प्रकार

  1. शासन काल
  2. कार्यालय आदेश
  3. परिपत्र
  4. अधिसूचना
  5. कर्यालय ज्ञापन
  6. ज्ञापन
  7. अनुस्मारक (स्मरण पत्र )
  8. अद्धशासकीय या अद्ध सरकारी पत्र
  9. अशासकीय पत्र
  10. पृष्ठांकन
  11. संकल्प या प्रस्ताव
  12. स्वीकृति या मंजूरी पत्र
  13. प्रेस विज्ञप्ति
  14. सूचना
  15. पावती
  16. निविदा
  17. कार्यालय टिप्पणी
  18. आरोप पत्र
  19. रेडियोग्राम
  20. मितव्यय पत्र
  21. विज्ञापन
  22. डिस्पैच
  23. इर्रेटम ( अशुद्धि पत्र )
  24. कोरिजेण्डम ( शुद्धि पत्र)
  25. परिशिष्ट
  26. उद्घोषणाएँ
  27. अन्तर्विभागीय टिप्पणी

सामान्य सरकारी पत्र

प्रारूप-
1. सरकार का नाम-ठीक बीच में, राजस्थान सरकार

2. कार्यालय या विभाग का नाम – सचिवालय से प्रेषित पत्र में विभाग का नाम लिखा जाता है। कार्यालय से प्रेषित पत्र में सर्वप्रथम
कार्यालय लिखकर उसके आगे प्रेषित अधिकारी के पद के नाम के साथ कार्यालय का नाम व स्थान के नाम का उल्लेख होता है यथा।विशेष – सचिवालय से जारी पत्रों में केवल विभाग का नाम – शिक्षा विभाग।
कार्यालय-प्रधानाचार्य, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, जोधपुर।
पत्र क्रमांक – बायीं ओर क्रमांक शीर्षक लगाकर उसके सामने कार्यालय अधिकारी एवं कार्यालय नाम के आद्यक्षर एक शिरोरेख में
लिख विकल्प चिह्न लगा स्थान का नाम संक्षेप में लिखकर विकल्प का उल्लेख किया जाता है। यथा

3. पत्र क्रमांक-प्रा.रा..उ.मा.वि./जोध/2019-18/108
विशेष – भारत सरकार के पत्रों में पत्र क्रमांक एवं सत्र वर्ष का उल्लेख पत्र में सबसे ऊपर सर्व प्रथम किया जाता है।

4. दिनांक – क्रमांक वाली पंक्ति में दाहिनी ओर दिनांक शीर्षक लगाकर, दिनांक का उल्लेख किया जाता है। यथा: दिनांक : 25 जुलाई,
2019
सचिवालय के विभाग द्वारा जारी पत्र में दिनांक के पूर्व राजधानी के नाम का उल्लेख होता है। यथा-
जयपुर, दिनांक 25 जुलाई, 2019

5. प्रेषक का पद नाम व पता- पत्र के बायीं ओर प्रेषक शीर्षक लगाकर उसके नीचे प्रेषक अधिकारी के पद नाम का उल्लेख कर उसके नीचे
कार्यालय का नाम तथा नीचे स्थान के नाम का उल्लेख किया जाता है।
विशेष –जिलाधीश एवं पुलिस अधीक्षण कार्यालय से प्रेषित पत्रों में प्रेषक के नीचे जिलाधीश या पुलिस अधीक्षक का व्यक्तिगत नाम
लिख उसके आगे उनकी उपाधि -आई.ए.एस. या आई.पी.एस. का उल्लेख होता है तथा नीचे पदनाम, कार्यालय व स्थान का नाम।

सामान्य                                                                                                           जिलाधीश कार्यालय से

प्रेषक:                                                                                                                              प्रेषक:

प्राधानाचार्य                                                                                                               क ख ग , आईएएस

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,                                                                         जिलाधीश कार्यालय,

जोधपुर।                                                                                                                            जोधपुर।

6. प्रेषित/सेवा में-
पत्र के बावों ओर प्रेषक के नीचे प्रेषिति या सेवा में लिखकर उसके नीचे प्रेषिति के पदनाम, विभाग या कार्यालय का नाम व स्थान के नाम
का उल्लेख किया जाता है। यथा-
प्रेषितिः
सचिव,
मध्यामिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान,
अजमेर।

7. विषय – पत्र के बायीं ओर हाँसिए से कुछ दूर विषय शीर्षक लगाकर विषय का उल्लेख किया जाता है। विषय लम्बा होने पर दूसरी पति
हॉसिए से न लिखकर विषय शीर्षक के आगे से लिखी जाती है।
विषय: छात्रों के नामों में वर्तनी संबंधी संशोधन हेतु ।

8. संदर्भ/प्रसंग- यदि किसी कार्यालय से पत्र पहली बार प्रेषित किया जाय तथा किसी के पत्र का प्रत्युत्तर न हो तो उस पत्र में संदर्भ का उल्लेख नहीं होता है। किन्तु जब किसी के पत्र का उत्तर देना हो तब विषय शीर्षक के नीचे संदर्भ या प्रसंग शीर्षक लगाया जाता है तथा उसके आगे अगले अधिकारी के पूर्व पत्र क्रमांक एवं दिनांक का उल्लेख संदर्भ में किया जाता है। यथा-
विषयः
संदर्भ प्रसंग: आपके पत्र क्रमांक : समाशिबो/अज/1001 दिनांक 10.10.18

9. सम्बोधन या अभिवादन- पत्र के बायीं ओर महोदय/महोदया शब्द का प्रयोग सम्बोधन रूप में किया जाता है किन्तु अपने से निम्न कनिष्ठ अधिकारी को लिखे जाने वाले पत्र में सम्बोधन शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है।

10. पत्र का मुख्य या मध्यभाग- पत्र का मध्यभाग आवश्यकतानुसार दो तीन अवतरणों में हो सकता है-
इनमें पहला अवतरण निम्न में से किसी वाक्यांश का प्रयोग करते हुए किया जा सकता है।
(1) लेख है कि
(2) सूचनार्थ लिखा जाता है कि
(3) यह सूचित करने का मुझे आदेश /निर्देश मिला है कि
(4) उपर्युक्त विषय में लेख है कि
द्वितीय अवतरण में मुख्य विषयवस्तु का टालेख करते हुए पत्र का समापन किया जाता है।

11. स्वनिर्देश/अन्तिम प्रशंसात्मक भाग- पत्र के दाहिनी और शिष्टता सूचक शब्द भवदीय का उमेख किया जाता है किन्तु अपने से निम्न पदाधिकारी हेतु भवदीय स्वनिर्देश का प्रयोग नहीं किया जाता है।

12. हस्ताक्षर, पदनाम, कार्यालय नाम
स्वनिर्देश भवदीय के नीचे अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं, हस्ताक्षर के नीचे कोष्ठक में नामोल्लेख होता है तथा नामोरेख के नीचे पद का
नाम व कार्यालय का नाम लिखा जाता है कतिपय कार्यालय की मुहर का प्रयोग करते हैं।

13. संलग्न-
यदि पत्र के साथ कोई अन्य पत्र या सूचना संलग्न कर भेजी जाती है तो पत्र में स्वनिर्देश के बायीं और संलग्न शीर्षक लगाकर उसके आगे
पत्र संख्या या संक्षेप में सूचना का उल्लेख किया जाता है यथा
संलग्न =3 पत्र
संलग्न – गिरदावरी रिपोर्ट,

14. पृष्ठांकन-
जब पत्र की प्रतिलिपि सूचनार्थ किसी अन्य पदाधिकारी को भेजनी हो तो पृष्ठांकन प्रक्रिया का प्रयोग करते हुए सर्वप्रथम पत्र क्रमांक एवं
दिनांक का उल्लेख किया जाता है। उसके नीचे प्रतिलिपि सूचनार्थ अवलोकनार्थ या आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित लिखा जाता है। उसके
नीचे जिन्हें प्रति भेजनी है उनका उल्लेख किया जाता है, तथा अन्त में पुनः दाहिनी ओर हस्ताक्षर कर पदनाम का उल्लेख किया जाता है।
15. टंकक का संक्षेप में नाम
यदि पत्र टंकित किया गया है तो पत्र के बायीं ओर अन्त में टंकक अपना संक्षेप में नाम टंकित करता है जिससे यह ज्ञात हो सके कि उस
पत्र को किस टंकक ने टंकित किया।

गुजरात सरकार,

गांधीनगर

रविंद्र शाह

उपसचिव वित्त

गांधीनगर, गुजरात

विषय-आवंटन से अधिक राशि खर्च करने विषयक।

महोदय,

इस बार हमारी सहकारी संस्था को अनुदान की राशि पिछले वर्ष की तुलना में बहुत कम मिली इस कारण जो व्यय होना है वह नहीं कर पा रहे। जब तक और राशि आवंटित नहीं होती तब तक सारे काम रुके पड़े हैं। कृपया गत वर्ष के समान ही अनदान राशि आवंटित करें।

सादर

भवदीय

नरेंद्र पटेल

राज्य सहकारी संस्था, अहमदाबाद

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